Sunday, January 6, 2008

सपनो का शहर

दुख में डूबी , आसुओं का समंदर ,भूल गई किनारों को
डूब गई उस भवर में , जिसे समझी थी शहर
गाँव की मई भोली लड़की , सोचा था यहाँ खुला आसमा होगा
ज़मी ही नही आस्मां भी अपना होगा
उड़ने की आश लेकर , उठी थी ज़मी से
ना जाने कहाँ खो गई ?, ये न सोचा आसमा विस्तृत होगा
खो गई माँ ! कहाँ आ गई मै !, मेरे सपनो का शहर एसा होगा !
सोचा ना था इतनी अकेली , सिर्फ़ दुखो का अँधेरा आसमा होगा .
सूरज को देखकर के उड़ान भरी , आसमा में पहुचने पे वो जा चुका था .
और सिर्फ़ अँधेरा आसमा मेरा था .
अब तो बस डूब जाने का मन् करता है सागर में
या जल जाने का दिल करता है दीपक में
सपनो का शहर फ़िर मेरा होगा !!!!

1 comment:

kajalvikky said...

waise to sari hi achhi hai but mujhe ye
bestlagi