दुख  में  डूबी , आसुओं  का  समंदर ,भूल  गई  किनारों  को 
डूब  गई  उस  भवर  में , जिसे  समझी  थी  शहर 
गाँव  की  मई  भोली  लड़की  , सोचा  था  यहाँ  खुला  आसमा  होगा 
ज़मी  ही  नही  आस्मां  भी  अपना  होगा 
उड़ने  की  आश  लेकर , उठी  थी  ज़मी  से 
ना  जाने  कहाँ  खो  गई ?, ये  न  सोचा  आसमा  विस्तृत  होगा 
खो  गई  माँ ! कहाँ  आ  गई  मै !, मेरे  सपनो  का  शहर एसा होगा !
सोचा  ना  था  इतनी  अकेली , सिर्फ़  दुखो  का  अँधेरा  आसमा  होगा .
सूरज  को  देखकर  के  उड़ान  भरी , आसमा  में  पहुचने  पे  वो  जा  चुका  था .
और  सिर्फ़  अँधेरा  आसमा  मेरा  था .
अब  तो  बस  डूब  जाने  का   मन्  करता  है  सागर  में
या जल जाने का दिल करता है दीपक में 
सपनो का शहर फ़िर मेरा होगा !!!!
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1 comment:
waise to sari hi achhi hai but mujhe ye
bestlagi
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