Monday, January 7, 2008

दोपहर -शाम

कब सुबह हुई, कब दोपहर हमे शाम को याद आया घर जाना .
जिन् सड़को पर रहे घूमते , वो शाम को लगा जाना पहचाना .
जिसे हमसफ़र समझा दोपहर , उसे शाम को अपना ही साया पाया .
जिस सूरज की ऊष्मा में झुलश गए दोपहर ,शाम को उसे उतना ही प्यारा पाया .
सही है साथ रहना नही याद रहता ,याद रहता केवल उसका "जाना ".

3 comments:

http://gshanky.wordpress.com said...

Wah Wah!!
seeems coming from heart
:)

kajalvikky said...

bahut badhiya
really padh ke bahut khushi hui

ASHU said...

bahoot sundar........