Thursday, January 10, 2008

मैं

मैं हूँ जो, जैसी हूँ , वैसी ही हूँ
नही मतलब मुझे ज़माने से कि मैं क्या हूँ
नही बदलना मुझे खुद को,आज बरसों बाद लौटी हूँ
जब बदला नही नभ,सूरज,धरा और चँद्रमा
नही बदला जब कुदरत का कोई भी करिश्मा
फिर मैं भी तो हूँ उसी कि रचना !!!!
फिर क्यों करू परीवर्तीत खुद को, बरसों बाद पाया है मैंने स्वयं को
सूरत मे खोई जो सीरत थी, आज जाना है मैंने उसको
तभी तो जाना आज कि, मैं हूँ जो,जैसी हूँ, वैसी ही हूँ!!!!

1 comment:

kajalvikky said...

bahut badhiya
hume to maloon hi nahi tha
aap poem bhi karti hain