Wednesday, August 11, 2010

जिंदगी हुई सस्ती

जब मैंने पहली बार एक रोड एक्सिडेंट देखा तो रूह काप गयी
कभी सोचती चालक की गलती थी, कभी सोचती उस जल्दी में सड़क पार करते इंसान की शायद।
जब कुछ ही दिनों में दूसरी बार फिर तीसरी बार और फिर हर २-३ दिन में १ ,
लगा ओह भगवान् क्या इंसान की जान की कीमत कुछ भी नहीं ।
तो क्यों ये इंसान दूसरे इंसान को रौदते निकल जाते हैं, क्या उन्हें ये डर नहीं रह गया
की अपनी करनी का फल भोगना पड़ता है। शायद इसीलिए लोगों ने धर्मं बनाये थे
ताकि लोगों के दिल में कुछ तो प्यार होगा इंसान से, और डर होगा कुछ भी गलत करने से,
पर अब तो इंसान खुद को धर्मं और भगवान् से बढ़के मानने लगा है ।
कल की ही बात है ओउटर रिंग रोड सबसे भीडभाड की रोड पे एक भी बल्ब नहीं जल रहा था
धुत अँधेरे में लोग रास्ता पार कर रहे थे , और खुद को रोड एक्सिडेंट में स्वाहा कर रहे हैं
क्या है ये? क्या ये कोई सोची समझी चाल है ?

अब तो सुबह निकलते हुए भी डर लगता है जाने आज वापस लौट के घर पहुचेंगे या नहीं
हे भगवान् बहुत चला ली इंसानों ने अपनी मनमानी अब तो उन् पे लगाम लगाओ
वरना आपके बनाये इस खूबसूरत दुनिया को शमशान में बदलते देर नहीं लगेगी

सर्वे भवन्तु सुखिंह , सर्वे सन्तु निरामया
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु , माँ कश्चिद दुख्भाग्भावेत

Tuesday, August 10, 2010

सावन

आया सावन झूम के !!!
बारीस के दिन है, खूब बारीस हो रही है
मै ही क्यूं सुखी रह जाऊ
बस निकल पड़ी उस दिन उनके साथ
यूं ही बारीस में घूमते रहे, लोग देखते कुछ जिज्ञासा से कुछ आश्चर्य से तो कुछ जलन से
हमे यूं घूमते और मस्ती करते पानी में छप्पा छई करते,झूला झूलते
दूसरे दिन ये हरी चूड़िया लेकर आये
लगा अभी बीते नहीं दिन सावन के
अब भी आता है सावन झूम के!!!!