Thursday, January 10, 2008

मैं

मैं हूँ जो, जैसी हूँ , वैसी ही हूँ
नही मतलब मुझे ज़माने से कि मैं क्या हूँ
नही बदलना मुझे खुद को,आज बरसों बाद लौटी हूँ
जब बदला नही नभ,सूरज,धरा और चँद्रमा
नही बदला जब कुदरत का कोई भी करिश्मा
फिर मैं भी तो हूँ उसी कि रचना !!!!
फिर क्यों करू परीवर्तीत खुद को, बरसों बाद पाया है मैंने स्वयं को
सूरत मे खोई जो सीरत थी, आज जाना है मैंने उसको
तभी तो जाना आज कि, मैं हूँ जो,जैसी हूँ, वैसी ही हूँ!!!!

संघर्ष

संघर्ष के इस रक्तिम वर्ण को जीवन के रंग मे रंग लो.
आदेश तुम्हे है धरा और नभ का सूर्य और चन्द्र का.
इस बहती दरिया से सीखो, सदा आगे ही बढ़ना.
जीवन का सौन्दर्य कहीं खो ना जाये जीवन घट मे .
जाओ जाओ जल्दी जाओ, हो ना जाये देर कहीं
जाओ पालो विजय श्री लुप्त ना हो जाए कहीं
ये जीवन मिला है कुछ कर गुजरने के लिए
इसके कीमती वक्त को बर्बाद ना करो
पल मे हो जाये सूर्यास्त ना कहीं
पकड़ लो रश्मियों को, छुपा लो इन्हें आंखो मे
खोना नही अब और कुछ, सब कुछ पाना है तुमको
जीवन का सौन्दर्य कर रहा तुम्हारा आह्वाहान है

Monday, January 7, 2008

दोपहर -शाम

कब सुबह हुई, कब दोपहर हमे शाम को याद आया घर जाना .
जिन् सड़को पर रहे घूमते , वो शाम को लगा जाना पहचाना .
जिसे हमसफ़र समझा दोपहर , उसे शाम को अपना ही साया पाया .
जिस सूरज की ऊष्मा में झुलश गए दोपहर ,शाम को उसे उतना ही प्यारा पाया .
सही है साथ रहना नही याद रहता ,याद रहता केवल उसका "जाना ".

अँधेरा

इतने से अंधेरे से डर गए ,अभी तो रात का रंग और भी गहरा होगा .
जमी नही दीख रही थी , आसमा तो चमक रहा था .
अब तो आसमा भी जमी के काले आँचल में छुप जाएगा ।
वीराना अँधेरा समां होगा .
कुछ भी अलग अलग नही , अलग रंग नही
सब कुछ एक सा , एक ही रंग में डूबा होगा .
सदा सर्वदा का सत्य अँधेरा ,कितना स्नेहिल कितना निश्चल .
हर गम को हर किसी से छीन के अपने ही सीने में छुपा लेगा .
अभी तो रात का रंग और भी गहरा होगा ......

Sunday, January 6, 2008

सपनो का शहर

दुख में डूबी , आसुओं का समंदर ,भूल गई किनारों को
डूब गई उस भवर में , जिसे समझी थी शहर
गाँव की मई भोली लड़की , सोचा था यहाँ खुला आसमा होगा
ज़मी ही नही आस्मां भी अपना होगा
उड़ने की आश लेकर , उठी थी ज़मी से
ना जाने कहाँ खो गई ?, ये न सोचा आसमा विस्तृत होगा
खो गई माँ ! कहाँ आ गई मै !, मेरे सपनो का शहर एसा होगा !
सोचा ना था इतनी अकेली , सिर्फ़ दुखो का अँधेरा आसमा होगा .
सूरज को देखकर के उड़ान भरी , आसमा में पहुचने पे वो जा चुका था .
और सिर्फ़ अँधेरा आसमा मेरा था .
अब तो बस डूब जाने का मन् करता है सागर में
या जल जाने का दिल करता है दीपक में
सपनो का शहर फ़िर मेरा होगा !!!!

Poems on college rough copies

Hi dear friends

We all have some fav pass time in college lectures.
I used to write some lines or u can say poems in my rough copies.
I am fond of reading and writting anything.
i am a day dreaming gal and i like to live in dreams.
there were different different circumstances in which i wrote.