Sunday, July 27, 2008
Randy Pausch’s Last Lecture 2
if anybody till not know abt this last lecture, the theme of the lecture was making ur childhood dreams come true. live the life up to fullest, make ur childhood dream true it doesn't matter how silly was that. so naturally i started thinking about my childhood dreams and was astonished to know that i never had any except earning money and make my family's life better. and what a middle class Indian family child may think or dream?so, so lets earn more n more and forget our loved ones ?or try to change our dream, try not only earn money but love of everyone also?we have to think what we are doing today. we have to think other wise at the end of our journey we will surely regret why we not changed.
Randy Pausch’s Last Lecture 1
Today i had seen video's of Randy Pausch’s Last Lecture and read it word by word it really a great a lecture as i find it.wanna share some of my emotions with it.there are many a thoughts in our life and we know that is the only truth about life but we just easily forget to accept that thought.I think almost everyone would agree with line said by him that we in our lives need not money or things its the relationships with others and love we give and get we need.but you may see peoples destroying any one's and even themselves life also to get the money and things. all world is going for the money no matters your beloved are needing your time n u may busy in earning more money for them.everybody wanted to settle down with there career no body wanted to settle with a happy family. and as he said in his lecture at the end of lives journey you would not need money or things you would need peoples arnd you.we are setting several goals and milestone to become more successful but not even trying to get in touch with friends and peoples arnd us.I am really thankful to god that i had a lot of people arnd me who respects me loves me.and that's what i gained till today.its the love we are forgetting day by day and its really a painful stage of world.Randy died yesterday but we should learn from his lecture what he has given us the lecture of love,relationships,trust and friendship.
Wednesday, May 14, 2008
ख्वाब सा शहर
बादलों के पार हैं वो सारे ख्वाब पाने को जिन्हें सब हैं बेताब
ना ढलता हो दिन कभी ना होती हो रात हर खुशी हो अपनी तेरा हो साथ
गम की जहाँ न हो कोई पहचान खाव्बों सा शहर एक प्यार का जहाँ
सितारों के पास रखके बादलों पे पाँव गाऊ गुन्गुनाऊ ,छेङू ऐसी कुछ तान
सुरीले हो साज़ सब मीठा हो गान नाचू मै झूम के हवाओं के साथ
छेङू मै फूलों को मिलके भँवरो के साथ जुगनुओं से मिलके करू रोशन ये जहाँ
कर लू पूरे दिल के वो सारे अरमां बाँध के शमा बना दु हर पल को खाश
सँवारू मै बचपन भर दूँ जीने की आश स्पर्श हो प्यार का मोहब्बत का हो प्रयाश
कर लूँ वो सारे सपने साकार खुशियों से भरा हो अपना ये जहाँ
खाबों सा शहर एक प्यार का जहाँ !!!!!!
Thursday, January 10, 2008
मैं
मैं हूँ जो, जैसी हूँ , वैसी ही हूँ
नही मतलब मुझे ज़माने से कि मैं क्या हूँ
नही बदलना मुझे खुद को,आज बरसों बाद लौटी हूँ
जब बदला नही नभ,सूरज,धरा और चँद्रमा
नही बदला जब कुदरत का कोई भी करिश्मा
फिर मैं भी तो हूँ उसी कि रचना !!!!
फिर क्यों करू परीवर्तीत खुद को, बरसों बाद पाया है मैंने स्वयं को
सूरत मे खोई जो सीरत थी, आज जाना है मैंने उसको
तभी तो जाना आज कि, मैं हूँ जो,जैसी हूँ, वैसी ही हूँ!!!!
नही मतलब मुझे ज़माने से कि मैं क्या हूँ
नही बदलना मुझे खुद को,आज बरसों बाद लौटी हूँ
जब बदला नही नभ,सूरज,धरा और चँद्रमा
नही बदला जब कुदरत का कोई भी करिश्मा
फिर मैं भी तो हूँ उसी कि रचना !!!!
फिर क्यों करू परीवर्तीत खुद को, बरसों बाद पाया है मैंने स्वयं को
सूरत मे खोई जो सीरत थी, आज जाना है मैंने उसको
तभी तो जाना आज कि, मैं हूँ जो,जैसी हूँ, वैसी ही हूँ!!!!
संघर्ष
संघर्ष के इस रक्तिम वर्ण को जीवन के रंग मे रंग लो.
आदेश तुम्हे है धरा और नभ का सूर्य और चन्द्र का.
इस बहती दरिया से सीखो, सदा आगे ही बढ़ना.
जीवन का सौन्दर्य कहीं खो ना जाये जीवन घट मे .
जाओ जाओ जल्दी जाओ, हो ना जाये देर कहीं
जाओ पालो विजय श्री लुप्त ना हो जाए कहीं
ये जीवन मिला है कुछ कर गुजरने के लिए
इसके कीमती वक्त को बर्बाद ना करो
पल मे हो जाये सूर्यास्त ना कहीं
पकड़ लो रश्मियों को, छुपा लो इन्हें आंखो मे
खोना नही अब और कुछ, सब कुछ पाना है तुमको
जीवन का सौन्दर्य कर रहा तुम्हारा आह्वाहान है
आदेश तुम्हे है धरा और नभ का सूर्य और चन्द्र का.
इस बहती दरिया से सीखो, सदा आगे ही बढ़ना.
जीवन का सौन्दर्य कहीं खो ना जाये जीवन घट मे .
जाओ जाओ जल्दी जाओ, हो ना जाये देर कहीं
जाओ पालो विजय श्री लुप्त ना हो जाए कहीं
ये जीवन मिला है कुछ कर गुजरने के लिए
इसके कीमती वक्त को बर्बाद ना करो
पल मे हो जाये सूर्यास्त ना कहीं
पकड़ लो रश्मियों को, छुपा लो इन्हें आंखो मे
खोना नही अब और कुछ, सब कुछ पाना है तुमको
जीवन का सौन्दर्य कर रहा तुम्हारा आह्वाहान है
Monday, January 7, 2008
दोपहर -शाम
कब सुबह हुई, कब दोपहर हमे शाम को याद आया घर जाना .
जिन् सड़को पर रहे घूमते , वो शाम को लगा जाना पहचाना .
जिसे हमसफ़र समझा दोपहर , उसे शाम को अपना ही साया पाया .
जिस सूरज की ऊष्मा में झुलश गए दोपहर ,शाम को उसे उतना ही प्यारा पाया .
सही है साथ रहना नही याद रहता ,याद रहता केवल उसका "जाना ".
जिन् सड़को पर रहे घूमते , वो शाम को लगा जाना पहचाना .
जिसे हमसफ़र समझा दोपहर , उसे शाम को अपना ही साया पाया .
जिस सूरज की ऊष्मा में झुलश गए दोपहर ,शाम को उसे उतना ही प्यारा पाया .
सही है साथ रहना नही याद रहता ,याद रहता केवल उसका "जाना ".
अँधेरा
इतने से अंधेरे से डर गए ,अभी तो रात का रंग और भी गहरा होगा .
जमी नही दीख रही थी , आसमा तो चमक रहा था .
अब तो आसमा भी जमी के काले आँचल में छुप जाएगा ।
वीराना अँधेरा समां होगा .
कुछ भी अलग अलग नही , अलग रंग नही
सब कुछ एक सा , एक ही रंग में डूबा होगा .
सदा सर्वदा का सत्य अँधेरा ,कितना स्नेहिल कितना निश्चल .
हर गम को हर किसी से छीन के अपने ही सीने में छुपा लेगा .
अभी तो रात का रंग और भी गहरा होगा ......
जमी नही दीख रही थी , आसमा तो चमक रहा था .
अब तो आसमा भी जमी के काले आँचल में छुप जाएगा ।
वीराना अँधेरा समां होगा .
कुछ भी अलग अलग नही , अलग रंग नही
सब कुछ एक सा , एक ही रंग में डूबा होगा .
सदा सर्वदा का सत्य अँधेरा ,कितना स्नेहिल कितना निश्चल .
हर गम को हर किसी से छीन के अपने ही सीने में छुपा लेगा .
अभी तो रात का रंग और भी गहरा होगा ......
Sunday, January 6, 2008
सपनो का शहर
दुख में डूबी , आसुओं का समंदर ,भूल गई किनारों को
डूब गई उस भवर में , जिसे समझी थी शहर
गाँव की मई भोली लड़की , सोचा था यहाँ खुला आसमा होगा
ज़मी ही नही आस्मां भी अपना होगा
उड़ने की आश लेकर , उठी थी ज़मी से
ना जाने कहाँ खो गई ?, ये न सोचा आसमा विस्तृत होगा
खो गई माँ ! कहाँ आ गई मै !, मेरे सपनो का शहर एसा होगा !
सोचा ना था इतनी अकेली , सिर्फ़ दुखो का अँधेरा आसमा होगा .
सूरज को देखकर के उड़ान भरी , आसमा में पहुचने पे वो जा चुका था .
और सिर्फ़ अँधेरा आसमा मेरा था .
अब तो बस डूब जाने का मन् करता है सागर में
या जल जाने का दिल करता है दीपक में
सपनो का शहर फ़िर मेरा होगा !!!!
डूब गई उस भवर में , जिसे समझी थी शहर
गाँव की मई भोली लड़की , सोचा था यहाँ खुला आसमा होगा
ज़मी ही नही आस्मां भी अपना होगा
उड़ने की आश लेकर , उठी थी ज़मी से
ना जाने कहाँ खो गई ?, ये न सोचा आसमा विस्तृत होगा
खो गई माँ ! कहाँ आ गई मै !, मेरे सपनो का शहर एसा होगा !
सोचा ना था इतनी अकेली , सिर्फ़ दुखो का अँधेरा आसमा होगा .
सूरज को देखकर के उड़ान भरी , आसमा में पहुचने पे वो जा चुका था .
और सिर्फ़ अँधेरा आसमा मेरा था .
अब तो बस डूब जाने का मन् करता है सागर में
या जल जाने का दिल करता है दीपक में
सपनो का शहर फ़िर मेरा होगा !!!!
Poems on college rough copies
Hi dear friends
We all have some fav pass time in college lectures.
I used to write some lines or u can say poems in my rough copies.
I am fond of reading and writting anything.
i am a day dreaming gal and i like to live in dreams.
there were different different circumstances in which i wrote.
We all have some fav pass time in college lectures.
I used to write some lines or u can say poems in my rough copies.
I am fond of reading and writting anything.
i am a day dreaming gal and i like to live in dreams.
there were different different circumstances in which i wrote.
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