कब सुबह हुई, कब दोपहर हमे शाम को याद आया घर जाना .
जिन् सड़को पर रहे घूमते , वो शाम को लगा जाना पहचाना .
जिसे हमसफ़र समझा दोपहर , उसे शाम को अपना ही साया पाया .
जिस सूरज की ऊष्मा में झुलश गए दोपहर ,शाम को उसे उतना ही प्यारा पाया .
सही है साथ रहना नही याद रहता ,याद रहता केवल उसका "जाना ".
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3 comments:
Wah Wah!!
seeems coming from heart
:)
bahut badhiya
really padh ke bahut khushi hui
bahoot sundar........
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