Monday, January 7, 2008

अँधेरा

इतने से अंधेरे से डर गए ,अभी तो रात का रंग और भी गहरा होगा .
जमी नही दीख रही थी , आसमा तो चमक रहा था .
अब तो आसमा भी जमी के काले आँचल में छुप जाएगा ।
वीराना अँधेरा समां होगा .
कुछ भी अलग अलग नही , अलग रंग नही
सब कुछ एक सा , एक ही रंग में डूबा होगा .
सदा सर्वदा का सत्य अँधेरा ,कितना स्नेहिल कितना निश्चल .
हर गम को हर किसी से छीन के अपने ही सीने में छुपा लेगा .
अभी तो रात का रंग और भी गहरा होगा ......

2 comments:

kajalvikky said...

achhi kavita hai
bahut achhi

ASHU said...

kya baat hai ...........sabko andheri raat achhi lagti hai par sab darte hain jaise kashmeer jane se pehle har log sochte hain........