Monday, February 21, 2011
बाबा मेरो नैहर छुटो जाय
वो सिटी स्कूल के फिल्ड में घंटो खेलना, अपनी गली की दोस्तों के साथ वो लाल परी हरी परी तो कभी भरी दोपहरी में लगड़ी खेलने निकल जाना बॉस तले जाके सफेदाका को ढूड के उसको रोटी देना क्योंकि सब लोग उसको पागल कुत्ता बोलते थे कोई उसे रोटी नहीं देता जाने किस बात का गुस्सा था उसे जो बिना वजह सबके ऊपर भोका करता था वो , वो काली मई के मंदिर पे जाना वो कार्तिक की सुबहो में भोर गए ही अम्मा के साथ गंगा जी पे जाना वो पंडिताईन का हमे लाल टीका लगाना संकल्प छुडाना सब कितना सुकून भरा था वो गंगा जी की कल कल करती धारा सुबह सुबह न उठने के सौ बहाने बनाना सोने दो न रीचु दी पेट दुख रहा है , भाइयों का मुझे हर बात में सताना चिढाना और दुखी होके मेरा वो पूजा के कमरे में जाके रोना , जितना मन चाहे उतना रोना , और फिर अम्मा का वो प्यार वो उनकी गोद उनके ममता की छाव उनके आचल में छुप के सब दुख भूल जाना ! और फिर से वही सब चालू रोवा गाई क्योंकि पता था की ये सब के बाद एक मीठी छाओ एक प्यार भरा हाथ एक माँ का दिल है मेरे पास वो सब ठीक कर देगी वो सबको डांट लगाएगी की मुझे क्यों परेशान किया । पापा का वो सर पे हाथ फेरते ही जादू जैसे सारे दुःख दूर होना सुकून से सो जाना । अब वैसी नींद नहीं आती पापा अब तरसती हूँ माँ की गोद को उस ममता की छाओ को । दुःख और दर्द बेहिसाब बढ़ गए हैं पर उन्हें अपने प्यार से हमसे अलग करके सुकून से सुलाने वाले दूर हो गए हैं, हाय रे बाबा मेरो नैहर छुटो जाय हाय रे बाबा मेरो पीहर छुटो जाय ।
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