मैंने सोचा क्यों न इस नए साल नए वर्ष को स्वयं की पहचान का वर्ष बनाया जाए
वो कहते है ना की बुरा जो देखन मै चला, बुरा न मिलिया कोय , जो मन खोजा आपना तो मुझसे बुरा न कोय
और जो पहली बात खुद के बारे में समझ आई वो ये की कुछ तो खराबी है मुझमे जो आजतक मुझे एक अच्छा दोस्त नसीब नहीं हुआ या हुई , कोई एइसा नहीं जिससे मै अपना दुख बाट सकू, जिसके कंधे पे सिर रख के रो सकू, जो मुझे समझे और मुझे समझाये भी। पर जितना भी जानने की कोशिश करती हूँ कुछ भी समझ नहीं आता । मुझे जानने वालों हो सके तो आज मुझे ये बात समझा दो। क्यों नहीं बन सकी मै किसी की दोस्त और क्यों नहीं बना सकी किसी को अपना मित्र ।
Thursday, January 6, 2011
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